दिल्ली में कांग्रेस और आप मिलकर नहीं खोल पाई खाता : सातों सीटों पर बीजेपी ने परचम लहराया, विधानसभा में होगा नुकसान
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के एकजुट होने के बावजूद जिस तरह से बीजेपी ने दिल्ली में जीत का परचम लहराया है। उसका असर आने वाले दिनों में दिल्ली की राजनीति पर नजर आ सकता है। ऐसे में अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी को भी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के एकजुट होने के बावजूद जिस तरह से बीजेपी ने दिल्ली में जीत का परचम लहराया है। उसका असर आने वाले दिनों में दिल्ली की राजनीति पर नजर आ सकता है। ऐसे में अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी को भी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इससे पहले 2019 में भी भाजपा ने सातों सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जबरदस्त वापसी की थी। फिलहाल इस बार के चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह से आप को घेरने की कोशिश में जुटी है, ऐसे में लगता है आने वाले समय उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।
कांग्रेस और आप मिलकर नहीं खोल पाई खाता
बता दें जिस तरह से इस लोकसभा चुनाव में गठबंधन होने के बाद भी सातों सीटों पर हार गई, हालांकि गठबंधन की दम पर भले ही जीत-हार का अंतर कम हो गया हो लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर भी दिल्ली में खाता खोलने में नाकाम रहे हैं। वहीं बोला तो यह भी जा रहा है कि ऐसे में विधानसभा चुनाव में इस तरह का प्रयोग दोहराना दोनों ही पार्टियों के लिए शायद उतना आसान नहीं होगा । वैसे बीते दस सालों में दिल्ली में पार्टियों के बीच वोटिंग में बदलाव देखा गया है। जहां पहले कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर में हमेशा यह देखने के मिलता था कि बीजेपी को पराजय का सामना करना पड़ता रहा है। लेकिन जब भी चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होता है, तो उसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलता है।
दिल्ली में जनता दल का वज़ूद हुआ खत्म
दरअसल 1993 में विधानसभा चुनाव के समय दिल्ली में जनता दल असरदार था और उसने विधानसभा चुनाव में लगभग 13 फीसदी वोट हासिल किए थे। लेकिन उसे चार ही सीटों पर जीत मिली लेकिन इसके बाद भी जनता दल ने कई सीटों पर कांग्रेस के वोट काटने में कामयाब रही थी, इसी वजह से उस वक़्त कांग्रेस महज 14 सीटों पर सिमट गई थी और बीजेपी ने 49 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल कर ली। लेकिन उसके बाद दिल्ली में जनता दल इतना कमजोर हुआ कि उसका वजूद ही खत्म हो गया। जिसका नतीजा यह हुआ कि 1998 से लगातार कांग्रेस ही जीत हासिल करती रही।
त्रिकोणीय मुकाबला का बीजेपी को हुआ लाभ
हालांकि उसके बाद जब आम आदमी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा तो मुकाबला त्रिकोणीय हुआ और बीजेपी दिल्ली की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वहीं वर्ष 2015 से कांग्रेस का लगभग पूरा आधार खत्म हो गया, यहां तक कि वो खिसककर आप से जुड़ गया जिसकी वजह से लगातार दो बार के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपने दम पर ही प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। ऐसे में लोकसभा चुनाव के छह-सात महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव दिल्ली में बहुत दिलचस्प हो सकता हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि दिल्ली की सातों सीटों पर जीत के बाद बीजेपी बेहद आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ने की कोशिश करेगी और यहां तक कि चुनाव में चाहेगी कि वोटर लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही वोट करें। लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी के यह आसान भी नहीं होगा, दरअसल बीजेपी के लिए यह इसलिए आसान नहीं होगा क्योंकि दिल्ली के वोटर लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव को अलग-अलग नजरिए से देखते हैं।
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